मेरी नन्ही सी बिटिया
क्यूँ करती हो चिंता तुम
पापा के खाना न खाने की
देखो, बाकि घर वालो को देखो
वे कैसे खड़े है कविता के खिलाफ
गुडिया से खेलने की उम्र में
कविता लिखकर
क्यूँ बढ़ाती हो मेरे मन का संताप
पापा को परेशान मत करो
पापा को आराम करने दो
पापा आपके लिए पानी लाऊं
पापा लो, तकिया ले लो
भइया पापा से पैसे मत मांगना
उनको इस महीने ही देनी है फीस स्कूल की
पापा आप उदास क्यूँ हो
में बीमार हूँ इसलिए
नहीं पापा नहीं ऐसे उदास मत हो
मैं हूँ न
तुम क्या हो मेरी बच्ची
मेरी दादी या मेरी बिटिया
आज मैं जी भर के रोया हु बिटिया
सहन नहीं होता इतना प्यार मुझसे
बस करो बिटिया बस करो
बुधवार, 3 मार्च 2010
रविवार, 21 फ़रवरी 2010
साधो ये मुर्दों का गाँव
कबीर मैंने पूछा
तुम्हारे समय कौन था काशी का राजा
तुम्हारी आवाज आई
राजा मरिहैं !
फिर सोचा प्रजा के बारे में
पूछा क्या हाल था उसका
तुमने कहा
पिरजा मरिहैं !
मैं घबराया
भागकर गया ऊँची पहाड़ी वाले मंदिर,
कभी सूंडवाले , मुकुटवाले
धनुषवाले, बंशीवाले, चक्रवाले
शेरवाले , साँपवाले, वानर वाले , कुत्ते वाले
देवता के पास
फिर आवाज आई
छतीस कोटि देवता मरिहैं !
मैंने तसल्ली दी अपने आपको
मनं को ठंडा किया, चाँद की तरफ देखा
और सो गया
सुबह उठकर सूरज को अर्घ्य दिया
वह था रोशनी मे नहाया हुआ और पूरा
तभी आकाश में गूंजा तुम्हारा अनहद नाद
चँदा मरिहैं सूरज मरिहैं !
हार कर मैंने फूल को देखा
पेड़ को देखा
पत्तों को देखा
समुद्र को देखा
नदी को देखा
और रेत को देखा
तुहारे बारे में सोचा
और खुद को देखा
अब हर दिशा से आवाज आ रही थी
साधो ये मुर्दों का गाँव
साधो ये मुर्दों का गाँव
तुम्हारे समय कौन था काशी का राजा
तुम्हारी आवाज आई
राजा मरिहैं !
फिर सोचा प्रजा के बारे में
पूछा क्या हाल था उसका
तुमने कहा
पिरजा मरिहैं !
मैं घबराया
भागकर गया ऊँची पहाड़ी वाले मंदिर,
कभी सूंडवाले , मुकुटवाले
धनुषवाले, बंशीवाले, चक्रवाले
शेरवाले , साँपवाले, वानर वाले , कुत्ते वाले
देवता के पास
फिर आवाज आई
छतीस कोटि देवता मरिहैं !
मैंने तसल्ली दी अपने आपको
मनं को ठंडा किया, चाँद की तरफ देखा
और सो गया
सुबह उठकर सूरज को अर्घ्य दिया
वह था रोशनी मे नहाया हुआ और पूरा
तभी आकाश में गूंजा तुम्हारा अनहद नाद
चँदा मरिहैं सूरज मरिहैं !
हार कर मैंने फूल को देखा
पेड़ को देखा
पत्तों को देखा
समुद्र को देखा
नदी को देखा
और रेत को देखा
तुहारे बारे में सोचा
और खुद को देखा
अब हर दिशा से आवाज आ रही थी
साधो ये मुर्दों का गाँव
साधो ये मुर्दों का गाँव
शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
कुछ दोहे
ब्लॉग्गिंग की दुनिया में यह मेरा पहला क़दम है और मैं इसकी शुरुआत कुछ दोहों के साथ कर रहा हूँ. आप सब का प्रेम और आशीष मिलेगा इसी उम्मीद के साथ, सविनय...
दो रोटी दो प्याज ही, बचे हमारे बीच
इतना सारा अन्ना उगा, बनिया ले गया खींच
बोली प्रेम की सीख तू, ज्यों नैनों में नीर
नैना तो नदिया बने, बहता रहे शरीर
तेरा मेरा प्रेम है, ज्यों तितली के पंख
छू कर देखो तो ज़रा रंग तुम्हारे संग
तू तो मेरे साथ चल हरियाली के पेड़
बाकी सब तो खा गई, देख खेत की मेड़
विष उतना ही पीजिये, जितना रोग मिटाय
थोड़ी-ज्यादा मात्रा, मन कोढ़ी कर जाय
तेरा मेरा प्रेम है, ज्यों तोता और बेर
खट्टा-मीठा चाखते, हो जायेंगे ढेर
जीभ चिड़ी की काट कर, कौवे करें बखान
बांटेंगे अब ज्ञान हम, सब हिन्दू-मुसलमान
दो रोटी दो प्याज ही, बचे हमारे बीच
इतना सारा अन्ना उगा, बनिया ले गया खींच
बोली प्रेम की सीख तू, ज्यों नैनों में नीर
नैना तो नदिया बने, बहता रहे शरीर
तेरा मेरा प्रेम है, ज्यों तितली के पंख
छू कर देखो तो ज़रा रंग तुम्हारे संग
तू तो मेरे साथ चल हरियाली के पेड़
बाकी सब तो खा गई, देख खेत की मेड़
विष उतना ही पीजिये, जितना रोग मिटाय
थोड़ी-ज्यादा मात्रा, मन कोढ़ी कर जाय
तेरा मेरा प्रेम है, ज्यों तोता और बेर
खट्टा-मीठा चाखते, हो जायेंगे ढेर
जीभ चिड़ी की काट कर, कौवे करें बखान
बांटेंगे अब ज्ञान हम, सब हिन्दू-मुसलमान
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