रविवार, 21 फ़रवरी 2010

साधो ये मुर्दों का गाँव

कबीर मैंने पूछा 
तुम्हारे समय कौन था  काशी का राजा 
तुम्हारी आवाज आई 
राजा मरिहैं ! 
फिर सोचा प्रजा के बारे में 
पूछा क्या हाल था उसका 
तुमने कहा 
पिरजा मरिहैं ! 


मैं घबराया 
भागकर गया ऊँची पहाड़ी वाले मंदिर,
कभी सूंडवाले , मुकुटवाले
धनुषवाले, बंशीवाले, चक्रवाले
शेरवाले , साँपवाले, वानर वाले , कुत्ते वाले 
देवता के पास 
फिर आवाज आई 
छतीस कोटि देवता मरिहैं ! 

मैंने तसल्ली दी अपने आपको 
मनं को ठंडा किया, चाँद की तरफ देखा 
और सो गया
सुबह उठकर सूरज को अर्घ्य दिया 
वह था रोशनी मे नहाया  हुआ और पूरा 
तभी आकाश में गूंजा तुम्हारा अनहद नाद 
चँदा   मरिहैं  सूरज मरिहैं ! 

हार कर मैंने फूल को देखा 
पेड़ को देखा 
पत्तों को देखा  
समुद्र को देखा 
नदी को देखा 
और रेत को देखा  
तुहारे बारे में सोचा 
और खुद को देखा 
अब हर दिशा से आवाज आ रही थी 

साधो ये मुर्दों का गाँव
साधो ये मुर्दों का गाँव  

1 टिप्पणी:

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल ने कहा…

achha lagaa.

माणिक
www.maniknaamaa.blogspot.com
www.apnimaati.feedcluster.com
www.apnimaati.blogspot.com
www.apnimaati.wordpress.com